परिचय
वैदिक सभ्यता मूलतः आर्यों द्वारा स्थापित की गयी एक ग्रामीण सभ्यता थी। आर्य शब्द आर्यन शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है-उच्च कुल का। आर्यों के मूल स्थान के बारे में आज भी कई विद्वानो का मत अलग अलग है। आर्यों के मूल निवास का सही सही आकलन करने के उद्देश्य से इटली के रहने वाले फिलिप्पो सासेति ने विश्व के कई प्रमुख भाषाओ का तुलनात्मक ढंग से अध्ययन किया। अध्ययन के पश्चात यह ज्ञात हुआ की संस्कृत और कुछ अन्य भाषाओँ में कुछ शब्दों का सामान अर्थ निकलता है जैसे अंग्रेजी में माँ को मदर कहते है , फ़ारसी में माँ को मातेर , संस्कृत में मातृ , जर्मन में मतर , यूनानी में मेटोर कहा जाता है। इससे यह ज्ञात होता है की बहुत पहले लोग किसी एक स्थान पर बहुत लम्बे समय तक रहें हो। कुछ अन्य विद्वान इन विषयों पर कुछ अलग राय रखते हैं। परन्तु मैक्समूलर का मानना है की सबसे पहले आर्य मध्य एशिया में अपना ठिकाना बनाया और वैदिक सभ्यता की नीव रखी।
वैदिक काल को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
1 ऋग्वेदिक काल जिसका कार्यकाल १५०० से १००० ई.प तक माना जाता है
2. उत्तरवैदिक काल जिसका कार्यकाल १००० से ५०० ई.प तक माना जाता है
ऋग्वेदिक काल :- ऋग्वेदिक काल 1500 ई. पू से लेकर 1000 ई.पू तक माना जाता है। ऋग्वेदिक काल के बारे में जानकारी प्राप्त करने का एक मात्र स्त्रोत ऋग्वेद है। जिससे यह पता चलता है की आर्य सात नदियों की भूमि यानी सप्तसिंधु तक सीमित थे। सप्तसिंधु के अंतर्गत पूर्वी अफगानिस्तान , पंजाब तथा उत्तरप्रदेश के एक बड़ा हिस्सा शामिल था। ऋग्वेद में बहुत सारे नदियों का उल्लेख मिलता है जिनमे सरस्वती , सिंधु गोमती , सतलुज , व्यास आदि प्रमुख थे। ऋग्वेद में समुद्र का भी वर्णन मिलता है। ऋग्वेद से हिमालय पहाड़ की भी जानकारी मिलती है। दस राजाओं का युद्ध या दाशराज्ञ का युद्ध ऋग्वेदिक काल का महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है। सुदास त्रिस्तु परिवार का राजा हुआ करता था और विश्वामित्र सुदास का पुरोहित था। परन्तु सुदास ने विश्वामित्र के स्थान पर अपना पुरोहित विशिष्ठ को बना लिया। इससे विश्वामित्र बहुत ही नाराज़ हो गया और सुदास से बदला लेने के लिए दस राजाओं का एक दल बनाया और सुदास के विरुद्ध आक्रमण कर दिया। यह लड़ाई रावी नदी के किनारे लड़ा गया। इस लड़ाई में सुदास की विजय हुई। रावी नदी का जल बंटवारा भी इस युद्ध का एक अन्य कारण माना जाता था। इस लड़ाई का व्याख्यान ऋग्वेद के सातवें मंडल में किया गया है।
उत्तरवैदिक काल :- उत्तरवैदिक काल का कार्यकाल 1000 ई.पू से लेकर 500 ई.पू तक माना जाता है। उत्तरवैदिक कार्यकाल में वैदिक सभ्यता का विस्तार बिहार , पूरा उत्तरप्रदेश तथा पुरे राजस्थान में हो गया था। इसकी जानकारी शतपत ब्राह्मण से मिलता है। उत्तरवैदिक काल में राज्यतंत्र का उल्लेख मिलता है। भरत के कुरु वंश की स्थापना उत्तरवैदिक काल में ही किया था। कुरु वंश के राजा परीक्षित का वर्णन अथर्ववेद में मिलता है। पांचाल का भी जिक्र अथर्ववेद में मिलता है। शतपत ब्राह्मण के अनुसार पांचाल का प्राचीन नाम कृवि था। कौशल , विदेह तथा कशी राज्य की उत्पति संभवतः पांचाल और कुरु राज्य के पतन के बाद ठीक उसी जगह पर हुआ। लेकिन वैदिक सभ्यता के ग्रंथो के अनुसार कोसल राज्य की स्थापन सबसे पहले हुआ , यह राज्य पर शुरू में इक्ष्वाकु वंश का शासन था। इस राज्य की प्रारंभिक राजधानी अयोध्या थी लेकिन बाद में श्रावस्ती हो गयी थी।परा कोसल राज्य का सबसे महत्वपूर्ण राजा था।
सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति
"कुल " को वैदिक समाज के संरचना का आधार माना जाता था। किसी भी घर के मालिक को गृहपति , कुलपति या दम्पति कहा जाता था। वैदिक काल में अतिथि को बहुत ही पवित्र नजरों से देखा जाता था और अतिथि को "अग्नि " की उपाधि दी गयी थी। पिता के बाद सबसे बड़े बेटे को परिवार का उत्तराधिकारी बनाने की प्रथा उत्तर वैदिक युग से शुरू हुआ।
ऋग्वेदिक काल में किसी भी व्यक्ति की जाति कुल या जन्म के द्वारा निर्धारित नही किया जाता था। उस काल में व्यक्ति अपनी जाती अपने कर्मो के आधार पर खुद चुनता था। ऋग्वेदिक काल में अंतर्जातीय शादी पर कोई रोक नही थी और बहुत बड़े पैमाने पर अंतर्जातीय शादी होता था। ऋग्वेदिक काल में समाज मुख्यतः तीन भागों में विभक्त था ---सामान्य जनता , योद्धा और पुरोहित। ये विभाजन कार्यों के आधार पर किया गया था। वैदिक सभ्यता में शूद्र के रूप में चौथा समाज विभाजन ऋग्वेद के अंतिम समय में हुआ। शूद्र का वर्णन ऋग्वेद के दसवें मंडल में किया गया है।
ऋग्वेद में समाज में वर्ण वयवस्था काम के आधार पर बाँटा जाता था लेकिन उत्तरवैदिक काल में वर्ण वयवस्था जन्म के आधार पर तय होने लगा , जिससे वर्ण वयवस्था की दशा बहुत ख़राब हो गयी। धीरे धीरे समाज में ब्राह्मण और क्षत्रिय का कद समाज में बढ़ने लगा चाहे वो अयोग्य क्यों न हो , स्थिति यहां तक आ पहुंची की अलग अलग समाज के अलग अलग देवी देवता को माना जाने लगा। उदहारण के लिए शूद्रों के देवता पूषन , ब्राह्मणो के देवता बृहस्पति और अग्नि , वैश्यों के देवता मरुत और रूद्र तथा क्षत्रिय के देवता इन्द्र , सोम और वरुण थे। गोत्र की उत्पति उत्तरवैदिक काल में हुई। उत्तरवैदिक काल में महिलाओं के स्थिति अच्छी नही मानी जाती थी उन्हें सभाओं में जाने की भी अनुमति नही थी। इसका प्रमाण ऐतरेव ब्राह्मण से मिलता है जिसमे पुत्री को दुखों का कारन माना गया है। वैदिक सभ्यता में दास प्रथा का प्रमाण ऋग्वैदिक काल से ही मिल जाता है। ऋग्वैदिक काल के लोगों को लिखने पढ़ने का ज्ञान नही था किन्तु उत्तरवैदिक काल में लिपि की विकास होने से यह समस्या का अंत हो गया। वैसे भारत में लिपि का आरम्भ मौर्य काल से माना जाता है।
ऋग्वैदिक काल में आर्य पशुपालन पर आश्रित थे यधपि वे खेती भी करते थे। वे पशुओं को अपनी मुख्य सम्पति मानते थे। ऋग्वेदिक काल का मुख्या फसल गेहूं जिन्हे गोधूम कहा जाता था , जौ , दलहन , कपास आदि थे। आर्यों की भाषा संस्कृत हुआ करती थी। वैदिक सभ्यता गावों अर्थात ग्रामीण सभ्यता था , गांव के प्रधान को विश्पति कहा जाता था। वैदिक सभ्यता में युद्ध के लिए गोविष्ट शब्द का इस्तेमाल होता था जिसका अर्थ गायें का खोज होता था। वैदिक सभ्यता पूर्णतः पितृसत्तात्मक थी। उपनिषद, वेद , महापुराण आदि का उद्भव वैदिक काल में ही हुआ। उपनिषदों के संख्या 108 है जबकि महापुराण 18 , वेदांग 06 और वेद 4 है। अविवाहित महिला को वैदिक काल में अमाजु कहा जाता था। महाभारत की घटना उत्तरवैदिक काल का माना जाता है। महाभारत का प्राचीन नाम जयसंहिता है।
प्रमुख नदिओं का ऋग्वेदिक नाम
वर्तमान नाम ऋग्वेदिक नाम
- सरस्वती सरसुती
- गंडक सदानीरा
- स्वात सुवास्तु
- रावी पुरुष्णी
- व्यास विपासा
- चिनाब अस्किनी
- सतलज शतुद्री
सारांश
- आर्य शब्द की उत्पति आर्यन से हुआ है
- आर्यन का अर्थ होता है --उच्च कुल का
- वेद का मतलब विद होता है
- ऋग्वेदिक काल में ही दाशराज्ञ का युद्ध हुआ था
- दाशराज्ञ के युद्ध में सुदास विजयी हुआ था। यह युद्ध विश्वामित्र द्वारा गठित दस राजाओं तथा सुदास के बीच हुआ था।
- दाशराज्ञ युद्ध का वर्णन ऋग्वेद के सातवें मंडल में मिलता है
- उत्तरवैदिक काल के बारे में विस्तृत जानकारी शतपत ब्राह्मण से मिलता है
- वैदिक काल के लोग पशुओ पर निर्भर थे
- विदेह की स्थापन राजा माधव द्वारा उत्तरवैदिक काल में हुआ था
- वैदिक काल में अविवाहित महिला को अमाजु कहा जाता था
- वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी
- ग्राम प्रधान को विशप या विश्पति कहा जाता था
- वैदिक काल में युद्ध के लिए गोविष्ट शब्द का प्रयोग किया जाता था
- राजसूज्ञ यज्ञ का वर्णन उत्तरवैदिक काल में मिलता है
- उत्तर वैदिक काल में उपनिषद , महापुराण , वेदांग आदि की रचना हुआ।
- मुंडको उपनिषद से सत्वमेव जयते लिया गया है
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