भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
परिचय (Introduction)
भारत में अंग्रजों के विरुद्ध पहली लड़ाई सन 1857 ईस्वी में लड़ा गया। इससे अंग्रजों में बौखलाहट पैदा हो गयी और उन्हें ये समझते देर नही लगी कि अगर भारतियों पर कड़े कानून नही लगाया गया तो वे भविष्य में फिर से ऐसे आंदोलन कर सकते हैं। इसी को देखते हुए अंग्रेजों ने भारतीयों पर कड़े कानून लगा दिए। धीरे धीरे वक्त गुजरता गया। भारतीय अपनी स्वंत्रता को लेकर दृढ़संकल्प थे और इसी के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म सन 1885 में ए ओ हूएम के द्वारा हुआ। कांग्रेस को अंग्रजों से भारत को आज़ाद करवाने के लिए एक बड़े आंदोलन की जरुरत थी पर अपने लक्ष्य को सफलता पूर्वक प्राप्त करने के लिए कांग्रेस को मजबूत होने की आवश्यवकता थी इसलिए कांग्रेस ने देश के बुद्धिजीवी , युवा , किसान आदि को अपने दल में शामिल करने का प्रयास किया। सन 1917 में गांधीजी के भारत लौट आने से कांग्रेस को संजीवनी बूटी मिल गयी। गांधीजी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में पुरे देश भर से लोग कांग्रेस से जुड़े और अपनी मांग को अंग्रजों के सामने युद्ध स्तर पर रखा। अंग्रजों को इस बात से चिंता होने लगी पर उन्हें आनेवाली मुसीबतों के बारे में बिलकुल भी अंदाज़ा नही था क्योंकि 1857 के विद्रोह में वे भारतीयों को सफलतापूर्वक दबा दिए थे , लेकिन कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व में एक अलग शक्ति बनकर उभरी। 1917 में गांधीजी के भारत लौट आने के बाद स्वंत्रता आंदोलन तेज हुआ जिनमे सन 1920 ईस्वी का राष्ट्रीय असहयोग आंदोलन , सन 1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी मार्च , 1942 ईस्वी का भारत छोडो आंदोलन प्रमुख थे। और अंततः भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो गया।
1857 का सैनिक विद्रोह
1857 के विद्रोह के कई कारण जिम्मेवार थे जिनमे लार्ड डलहौजी के डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स (राज्य हड़प नीति), भारतियों सिपाहियों से भेदभाव आदि प्रमुख थे। लार्ड डलहौज़ी ने अपने राज्य हड़प की नीति से अनेक रियासत पर कब्ज़ा कर लिया था जिसमे सातारा (1858 ), सम्बलपुर (1849 ), झाँसी (1853 ), नागपुर (1854 ) और अवध (1856 ) प्रमुख थे। डलहौज़ी के इस नीति से भारतीय राजा बहुत ही नाखुश थे और यही नाराजगी विद्रोह का एक प्रमुख कारण बना।
1857 के विद्रोह के कई कारण जिम्मेवार थे जिनमे लार्ड डलहौजी के डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स (राज्य हड़प नीति), भारतियों सिपाहियों से भेदभाव आदि प्रमुख थे। लार्ड डलहौज़ी ने अपने राज्य हड़प की नीति से अनेक रियासत पर कब्ज़ा कर लिया था जिसमे सातारा (1858 ), सम्बलपुर (1849 ), झाँसी (1853 ), नागपुर (1854 ) और अवध (1856 ) प्रमुख थे। डलहौज़ी के इस नीति से भारतीय राजा बहुत ही नाखुश थे और यही नाराजगी विद्रोह का एक प्रमुख कारण बना।
अंग्रेजी सरकार में शामिल भारतीय सिपाहियों पर अंग्रेजों द्वारा बहुत भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिको को सेना के उच्च पद पर नही रखा जाता था साथ ही साथ वेतन कम दिया जाता था। इसके चलते भारतीय सैनिक मन ही मन अंग्रेजों के खिलाफ थे जो सन 1857 में सही समय आने पर वे खुलकर इस विद्रोह में कूद पड़े।
1857 विद्रोह का तात्कालिक कारण
अंग्रेजों द्वारा एनफील्ड राइफल का प्रयोग करना 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण माना जाता है। एलफिएल्ड राइफल का कारतूस चर्बीदार होता था जिसमे गाय और सूअर की चर्बी लगी होती थी। इससे भारतीय सैनिको की धार्मिक भावनावों को ठेस पहुंची। क्योकि गाय हिन्दुओ के लिए और सूअर मुसलमानो के लिए पवित्र था। जिसके फलस्वरूप बेहरामपुर बैरक में 26 फ़रवरी 1857 को 19 वीं नेटिव इन्फेंट्री के सिपाहियों ने एनफील्ड राइफल चलाने से इंकार कर दिया। उस समय 19 वीं नेटिव इन्फेंट्री का कमांडिंग अफसर कार्नर मिचेल था।
इसके बाद 24 मार्च 1857 को 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री (बैरकपुर , कोलकाता) के सिपाही मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया। उसने अपने सीनियर अफसर लेफ्टिनेंट बौग को बुरी तरह घायल कर दिया जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया। इन दोनों घटनाओं के बाद मेरठ और लखनऊ में भी सैनिक अंग्रेजी आदेश मानने से इंकार कर दिए।
1857 विद्रोह के प्रमुख नेता
1857 विद्रोह के निम्नलिखित प्रमुख नेता थे:-
1. नाना साहब और तात्या टोपे (कानपुर )
2. वीर कुंवर सिंह (आरा, बिहार )
3. हजरत महल (लखनऊ )
4. बहादुर शाह तृतीय (दिल्ली ) आदि।
1857 का विद्रोह एक असफल विद्रोह माना जाता है क्योंकि इस विद्रोह में बड़े पैमाने पर लोग शामिल नहीं हुए जिससे इस विद्रोह को आसानी से कुचल दिया गया। इससे यह साफ़ पता चलता है की उस समय भारतियों में राष्ट्रवादिता का आभाव था। इस विद्रोह के बाद भारतियों के मन में राष्ट्रवादिता का उदय हुआ। धीरे धीरे वक्त बीतता गया और वक्त के साथ भारतीयों में आजादी की भूख बढ़ती गयी। धीरे धीरे राष्ट्रवादी शक्तियां संगठित होने लगी जिसका उदहारण सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा आनंदमोहन बोस द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन (1876 ) था। फिर सन 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन हुआ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्थापना कई मायनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कांग्रेस शुरुआती दिनों में ही अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया। उसने कई मुद्दो पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस की ओर से गोपाल कृष्ण गोखले तथा दादाभाई नैरोजी ने 1906 ई. में ब्रिटिश सम्राज्य के अधीन स्वशासन की मांग की।
उग्रवाद का विकास
भारतियों में राष्ट्रवाद के प्रति चेतना उग्रवाद के विकास का प्रमुख कारण माना जाता है। ब्रिटिश सरकार के कठोर रवैय के चलते भारतीय हिंसा अपनाने पर मजबूर हो गए। 1892 ई. का इंडियन कौंसिल एक्ट इसका प्रमुख उदहारण है। ब्रिटिश सरकार भारत में दमनकारी नीति पर उतारू हो गयी थी। उसने राष्ट्रवाद के प्रचार को अपराध मानने वाला कानून (1898), प्रेष की स्वतंत्रता पर रोक (1904) जैसे दमनकारी कानून लागु किये। इससे भारतीय जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। धीरे धीरे भारतियों में स्वशाशन और आत्मसम्मान का भाव पैदा किया जिससे उग्रवाद को और बढ़ावा मिला। यही वजह था की बल गंगाधर तिलक ने कहा था की स्वराज्य प्रत्येक भारतियों का जन्मसिद्ध अधिकार है, यह कोई उपहार नही जो अंग्रेजों द्वारा परीक्षा लेकर दिया जाएगा।
उग्रवाद का तात्कालिक कारण
बंगाल विभाजन (1905 ) को उग्रवाद उत्पति का तत्कालीन कारन माना जाता है। उग्रवादियों का प्रमुख उद्देश्य पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति था जैसे की ब्रिटिश ने ऑस्ट्रेलिया , न्यूज़ीलैंड जैसे देशो को दे रखा था।
1909 का मार्ले मिंटो सुधार कानून
1909 के मार्ले मिंटो सुधर कानून को फुट डालो और शासन की नीति कहा जाता है। इस एक्ट का मकसद राज्यों में विधानपरिषदो को और सशक्त और विस्तृत करना था जिससे गैर भारतियों को अधिक से अधिक शामिल किया जा सके और भारत में उभरता हुआ राष्ट्रीय आंदोलन को रोक जा सके।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग समझौता (1916 )
कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1916) में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता बहाल करने के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण समझौता बाल गंगाधर तिलक के प्रयास से हुआ। इस समझौते का मुख्य उदेशय हिन्दू मुस्लिम समस्या का आम हल निकलना और और स्वंत्रता प्राप्ति पर जोर देना था।
होम रूल आंदोलन
1916 और 1917 के दौरान दो होम रूल की स्थापना किया गया। बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 में पहला होम रूल की स्थापना की और एनी वेसेन्ट ने दिसंबर 1916 में दूसरा होम रूल की स्थपना की। होम रूल आंदोलन के प्रेरणा आयरलैंड के होम रूल से आया था।
महात्मा गांधी (1869 से 1948 )
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर में सन 02 अक्टूबर 1869 ई. को हुआ था। 1893 में महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका गए थे वहां के व्यवसाइयों के अनुरोध पर। महात्मा गांधी ने सिविल डिसओबेडिएंट से प्रभावित होकर सन 1909 में लियो लोटस्टॉय के संपर्क में आये। Kingdom of God is within you लियो टॉलस्टॉय किस रचना है जिससे गांधीजी काफी प्रभावित हुए। गांधीजी ने डरबन के निकट फीनिक्स फार्म की स्थापना की। गांधीजी ने भारत लौटते समय इंग्लैंड में एक भारतीय अस्पताल की स्थापना की जिसके लिए उन्हें कैंसर -ए -हिन्द की उपाधि से नवाजा गया। गांधीजी भारत लौटने के बाद अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे एक सत्याग्रह आश्रम बनाया। इसके बाद 1917 में बिहार के चंपारण में और 1918 में खेड़ा (गुजरात ) में किसानो के हक़ में आंदोलन किया।
19 मार्च 1919 ई. का रॉलेट एक्ट , 13 अप्रैल 1919 का जलियाँवाला बाग हत्याकांड और 19 अक्टूबर 1919 का खिलाफत आंदोलन इत्यादि ने गांधीजी को असहयोग आंदोलन करने पर विवश कर दिया। गांधीजी ने 01 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया लेकिन 05 फ़रवरी 1922 के गोरखपुर के चौरी चौरा कांड से गांधीजी बहुत नाराज हुए और असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। इसी कांड के चलते गांधीजी को 13 मार्च 1922 में गिरफ्तार कर लिया गया और 06 साल की सजा सुनाई गयी लेकिन ख़राब स्वस्थ्य के कारण उन्हें 1924 में रिहा कर दिया गया। 1924 ई. में गांधीजी कांग्रेस के बेलगाम अधिवेशम् में अध्यक्ष चुने गए। इसी बीच साइमन कमीशन 03 फ़रवरी 1928 को भारत आया। इस कमीशन को वाइट मैन कमीशन भी कहा जाता है क्योंकि इस कमीशन का कोई भी सदस्य भारतीय नही था। भारत में इस कमीशन का जमकर विरोध हुआ। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय घायल हो गए और उनकी मृत्यु हो गयी। इस घटना के बाद भारतीय क्रांतिकारियों के मन में ज्वाला फूटने लगी और भगत सिंह के नेतृत्व में 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सॉन्डर्स की हत्या कर दिया गया। लेकिन बात यहीं नही रुकी और भगत सिंह के नेतृत्व में बुकटेश्वर दत्त और भगत सिंह ने पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में 08 अप्रैल 1929 को लाहौर अस्सेम्ब्ली में बम फेका। इस घटना के चलते दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ़्तारी के घटना से भारतीय और भड़क गए और परिणाम स्वरुप गांधीजी ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन के माध्यम से गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार से ग्यारह सूत्री मांग की इस मांग में पूर्ण स्वराज का जिक्र नही था। ये मांग किसानो , आम जनता और बुजुर्गो से जुड़े हुए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के नजरअंदाज करने के कारण गांधीजी बहुत क्षुब्द हुए और 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा शुरू कर दिया। गांधीजी अपने 79 समर्थकों के साथ साबरमती से दांडी की यात्रा शुरू की (करीब 320 किमी ) और २4 दिनों के बाद गांधीजी दांडी पहुंचकर 06 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोडा। यह यात्रा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए इतना मायने रखता है की सुभाष चन्द्र बोसे ने दांडी यात्रा की तुलना नेपोलियन का एल्बा से पेरिस यात्रा से किया था।
इन सभी घटनाओं से ब्रिटिश सरकार बहुत चिंतित होकर कांग्रेस को समझौते के लिए आमंत्रित किया। कांग्रेस के तरफ से तेज बहादुर सप्रू और डॉ जयकर शामिल हुए और समझौता हुआ। इसी समझौते किए फलस्वरूप गांधी -इरविन पैक्ट मार्च 1931 में हुआ इसके बाद गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त कर दिया। गांधी इरविन पैक्ट को दिल्ली समझौता भी कहते हैं। इसी बीच प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी १९३१ ) संपन्न हो गया। इस सम्मेलन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लेबर पार्टी के मैकडोनाल्ड थे। इस सम्मेलन के तुरंत बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और बुकटेश्वर दत्त को फांसी पर लटका दिया गया।
दूसरा गोलमेज सम्मेलन 01 सितम्बर 1931 से 11 दिसंबर 1931 तक चला। इसमें कांग्रेस की तरफ से गांधी जी ने भाग लिया परन्तु यह सम्मेलन असफल रहा। इसके बाद गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से शुरू कर दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन आधिकारिक तौर पर 07 अप्रैल 1934 को समाप्त कर दिया गया।
तृतीया गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1932 में हुआ।
कांग्रेस में कुछ अन्य घटनाएँ
भगत सिंह के फांसी और गोलमेज सम्मेलन असफलता के बाद कई नेता कांग्रेस और गांधीजी से बहुत ही नाराज थे। इसी के चलते 1934 ई. में कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। सुभाष चन्द्र बोस भी गांधीजी से बहुत नाराज थे और 1939 में सुभाष चन्द्र बोस ने गांधी जी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को हराकर कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। सुभाष चन्द्र बोस ने 01 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना किया। इसके एक साल बाद कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की। कांग्रेस के वर्धा अधिवेशन 1942 में अंग्रेज भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया। जिसके फलस्वरूप 09 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। इस आंदोलन का नारा था --- करो या मरो। करो या मरो का नारा ग़ांधी जी ने दिया था।
भारत छोड़ो आंदोलन (अगस्त क्रांति 1942 )
भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा 08 अगस्त 1942 को हुआ और 09 अगस्त 1942 से शुरू हो गया। यह आंदोलन इतना भयावह था की अंग्रेजों की हालत पतली हो गयी। उन्हें भारत खो देने का डर लग रहा था क्यूंकि
1939 ई. में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया था जिससे ब्रिटिश सरकार अपने विरोधियों से लड़ते हुए बिलकुल परेशान थी और उसे भारत से कोई समर्थन हासिल नही हो पा रहा था। इसी प्रयास में ब्रिटिश सरकार ने स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन (1942) को भारत भेजा जिससे की भारतीय राजनितिक दलों का समर्थन हासिल हो सके और ब्रिटेन पूरी मजबूती से द्वितीय विश्व युद्ध लड़ सके। क्रिप्स मिशन ने भारत और कांग्रेस के सामने यह प्रस्ताव रखा की द्वितीया विश्व युद्ध में अगर भारतीय लोग अंग्रेजों का साथ दे तो अंग्रेज भारत को आजाद कर देंगे लेकिन भारत सहमत नही हुआ और क्रिप्स मिशन असफल रहा।
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो गया लेकिन ब्रिटेन की हालत बहुत ही ख़राब हो गया था। उसे भारत जैसे उपनिवेश को बचा पाना मुस्किल लग रहा था और ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्र करने के इरादे से कैबिनेट मिशन को 1946 ई. में भारत भेजा। अंततः भारत 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान विभाजन के साथ आजाद हो गया।
भारीतय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नारा
1. जय हिन्द --------- सुभाष चन्द्र बोस
2. कर मत दो ---------- बल्लभ भाई पटेल
3. दिल्ली चलो ---------- सुभाष चन्द्र बोस
4 इंकलाब जिंदाबाद ---------- भगत सिंह
5 करो या मरो ------- महात्मा गांधी
6. पूर्ण स्वराज्य ----------- जवाहर लाल नेहरू
7 आराम हराम है ----------- जवाहर लाल नेहरू
8 साम्राज्य वाद का नाश हो ------------------- Bhagat singh
9 तुम मुझे खून दो मै तुझे आजादी दूंगा ----------- सुभाष चन्द्र बोस
10 स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है ----------बाल गंगाधर तिलक
११. साइमन कमीशन वापस जाओ ------------------- Lala lajpat rai
12. सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है -------राम प्रसाद बिस्मिल
13 हु लीव्स इफ इंडिया डाइज जवाहर लाल नेहरू
14 सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा --------------- Iqbal
प्रमुख किसान आंदोलन
खेड़ा आंदोलन (1918 ) -- गुजरात के खेड़ा जिले में किसानो द्वारा यह आंदोलन किया गया। सुखा पड़ जाने के कारण खेड़ा के किसान गांधीजी तथा बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में कर नही देने का अभियान चलाया।
बारदोली आंदोलन (1928 ) -- अंग्रेजों द्वारा 1927 में गुजरात के बारदोली में किसानो पर कर बढ़ा दिया गया। इसी के चलते बारदोली के किसान बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में आंदोलन चलाया। बारदोली के आंदोलन के बाद बल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि बारदोली के महिलाओं द्वारा दी गयी।
बंगाल का निल आंदोलन - यह आंदोलन बंगाल में किसानो के शोसन के विरोध में था। यह आंदोलन 1859 -60 में चला। मशहूर नाटककार दीनबंधु मित्र के नाटक "निल दर्पण " में इसे दिखाया गया है।
सारांश (Summary)
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर के लिए यहाँ क्लिक करें
1857 विद्रोह का तात्कालिक कारण
अंग्रेजों द्वारा एनफील्ड राइफल का प्रयोग करना 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण माना जाता है। एलफिएल्ड राइफल का कारतूस चर्बीदार होता था जिसमे गाय और सूअर की चर्बी लगी होती थी। इससे भारतीय सैनिको की धार्मिक भावनावों को ठेस पहुंची। क्योकि गाय हिन्दुओ के लिए और सूअर मुसलमानो के लिए पवित्र था। जिसके फलस्वरूप बेहरामपुर बैरक में 26 फ़रवरी 1857 को 19 वीं नेटिव इन्फेंट्री के सिपाहियों ने एनफील्ड राइफल चलाने से इंकार कर दिया। उस समय 19 वीं नेटिव इन्फेंट्री का कमांडिंग अफसर कार्नर मिचेल था।
इसके बाद 24 मार्च 1857 को 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री (बैरकपुर , कोलकाता) के सिपाही मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया। उसने अपने सीनियर अफसर लेफ्टिनेंट बौग को बुरी तरह घायल कर दिया जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया। इन दोनों घटनाओं के बाद मेरठ और लखनऊ में भी सैनिक अंग्रेजी आदेश मानने से इंकार कर दिए।
1857 विद्रोह के प्रमुख नेता
1857 विद्रोह के निम्नलिखित प्रमुख नेता थे:-
1. नाना साहब और तात्या टोपे (कानपुर )
2. वीर कुंवर सिंह (आरा, बिहार )
3. हजरत महल (लखनऊ )
4. बहादुर शाह तृतीय (दिल्ली ) आदि।
1857 का विद्रोह एक असफल विद्रोह माना जाता है क्योंकि इस विद्रोह में बड़े पैमाने पर लोग शामिल नहीं हुए जिससे इस विद्रोह को आसानी से कुचल दिया गया। इससे यह साफ़ पता चलता है की उस समय भारतियों में राष्ट्रवादिता का आभाव था। इस विद्रोह के बाद भारतियों के मन में राष्ट्रवादिता का उदय हुआ। धीरे धीरे वक्त बीतता गया और वक्त के साथ भारतीयों में आजादी की भूख बढ़ती गयी। धीरे धीरे राष्ट्रवादी शक्तियां संगठित होने लगी जिसका उदहारण सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा आनंदमोहन बोस द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन (1876 ) था। फिर सन 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन हुआ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्थापना कई मायनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कांग्रेस शुरुआती दिनों में ही अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया। उसने कई मुद्दो पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस की ओर से गोपाल कृष्ण गोखले तथा दादाभाई नैरोजी ने 1906 ई. में ब्रिटिश सम्राज्य के अधीन स्वशासन की मांग की।
उग्रवाद का विकास
भारतियों में राष्ट्रवाद के प्रति चेतना उग्रवाद के विकास का प्रमुख कारण माना जाता है। ब्रिटिश सरकार के कठोर रवैय के चलते भारतीय हिंसा अपनाने पर मजबूर हो गए। 1892 ई. का इंडियन कौंसिल एक्ट इसका प्रमुख उदहारण है। ब्रिटिश सरकार भारत में दमनकारी नीति पर उतारू हो गयी थी। उसने राष्ट्रवाद के प्रचार को अपराध मानने वाला कानून (1898), प्रेष की स्वतंत्रता पर रोक (1904) जैसे दमनकारी कानून लागु किये। इससे भारतीय जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। धीरे धीरे भारतियों में स्वशाशन और आत्मसम्मान का भाव पैदा किया जिससे उग्रवाद को और बढ़ावा मिला। यही वजह था की बल गंगाधर तिलक ने कहा था की स्वराज्य प्रत्येक भारतियों का जन्मसिद्ध अधिकार है, यह कोई उपहार नही जो अंग्रेजों द्वारा परीक्षा लेकर दिया जाएगा।
उग्रवाद का तात्कालिक कारण
बंगाल विभाजन (1905 ) को उग्रवाद उत्पति का तत्कालीन कारन माना जाता है। उग्रवादियों का प्रमुख उद्देश्य पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति था जैसे की ब्रिटिश ने ऑस्ट्रेलिया , न्यूज़ीलैंड जैसे देशो को दे रखा था।
1909 का मार्ले मिंटो सुधार कानून
1909 के मार्ले मिंटो सुधर कानून को फुट डालो और शासन की नीति कहा जाता है। इस एक्ट का मकसद राज्यों में विधानपरिषदो को और सशक्त और विस्तृत करना था जिससे गैर भारतियों को अधिक से अधिक शामिल किया जा सके और भारत में उभरता हुआ राष्ट्रीय आंदोलन को रोक जा सके।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग समझौता (1916 )
कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1916) में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता बहाल करने के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण समझौता बाल गंगाधर तिलक के प्रयास से हुआ। इस समझौते का मुख्य उदेशय हिन्दू मुस्लिम समस्या का आम हल निकलना और और स्वंत्रता प्राप्ति पर जोर देना था।
होम रूल आंदोलन
1916 और 1917 के दौरान दो होम रूल की स्थापना किया गया। बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 में पहला होम रूल की स्थापना की और एनी वेसेन्ट ने दिसंबर 1916 में दूसरा होम रूल की स्थपना की। होम रूल आंदोलन के प्रेरणा आयरलैंड के होम रूल से आया था।
महात्मा गांधी (1869 से 1948 )
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर में सन 02 अक्टूबर 1869 ई. को हुआ था। 1893 में महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका गए थे वहां के व्यवसाइयों के अनुरोध पर। महात्मा गांधी ने सिविल डिसओबेडिएंट से प्रभावित होकर सन 1909 में लियो लोटस्टॉय के संपर्क में आये। Kingdom of God is within you लियो टॉलस्टॉय किस रचना है जिससे गांधीजी काफी प्रभावित हुए। गांधीजी ने डरबन के निकट फीनिक्स फार्म की स्थापना की। गांधीजी ने भारत लौटते समय इंग्लैंड में एक भारतीय अस्पताल की स्थापना की जिसके लिए उन्हें कैंसर -ए -हिन्द की उपाधि से नवाजा गया। गांधीजी भारत लौटने के बाद अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे एक सत्याग्रह आश्रम बनाया। इसके बाद 1917 में बिहार के चंपारण में और 1918 में खेड़ा (गुजरात ) में किसानो के हक़ में आंदोलन किया।
19 मार्च 1919 ई. का रॉलेट एक्ट , 13 अप्रैल 1919 का जलियाँवाला बाग हत्याकांड और 19 अक्टूबर 1919 का खिलाफत आंदोलन इत्यादि ने गांधीजी को असहयोग आंदोलन करने पर विवश कर दिया। गांधीजी ने 01 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया लेकिन 05 फ़रवरी 1922 के गोरखपुर के चौरी चौरा कांड से गांधीजी बहुत नाराज हुए और असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। इसी कांड के चलते गांधीजी को 13 मार्च 1922 में गिरफ्तार कर लिया गया और 06 साल की सजा सुनाई गयी लेकिन ख़राब स्वस्थ्य के कारण उन्हें 1924 में रिहा कर दिया गया। 1924 ई. में गांधीजी कांग्रेस के बेलगाम अधिवेशम् में अध्यक्ष चुने गए। इसी बीच साइमन कमीशन 03 फ़रवरी 1928 को भारत आया। इस कमीशन को वाइट मैन कमीशन भी कहा जाता है क्योंकि इस कमीशन का कोई भी सदस्य भारतीय नही था। भारत में इस कमीशन का जमकर विरोध हुआ। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय घायल हो गए और उनकी मृत्यु हो गयी। इस घटना के बाद भारतीय क्रांतिकारियों के मन में ज्वाला फूटने लगी और भगत सिंह के नेतृत्व में 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सॉन्डर्स की हत्या कर दिया गया। लेकिन बात यहीं नही रुकी और भगत सिंह के नेतृत्व में बुकटेश्वर दत्त और भगत सिंह ने पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में 08 अप्रैल 1929 को लाहौर अस्सेम्ब्ली में बम फेका। इस घटना के चलते दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ़्तारी के घटना से भारतीय और भड़क गए और परिणाम स्वरुप गांधीजी ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन के माध्यम से गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार से ग्यारह सूत्री मांग की इस मांग में पूर्ण स्वराज का जिक्र नही था। ये मांग किसानो , आम जनता और बुजुर्गो से जुड़े हुए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के नजरअंदाज करने के कारण गांधीजी बहुत क्षुब्द हुए और 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा शुरू कर दिया। गांधीजी अपने 79 समर्थकों के साथ साबरमती से दांडी की यात्रा शुरू की (करीब 320 किमी ) और २4 दिनों के बाद गांधीजी दांडी पहुंचकर 06 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोडा। यह यात्रा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए इतना मायने रखता है की सुभाष चन्द्र बोसे ने दांडी यात्रा की तुलना नेपोलियन का एल्बा से पेरिस यात्रा से किया था।
इन सभी घटनाओं से ब्रिटिश सरकार बहुत चिंतित होकर कांग्रेस को समझौते के लिए आमंत्रित किया। कांग्रेस के तरफ से तेज बहादुर सप्रू और डॉ जयकर शामिल हुए और समझौता हुआ। इसी समझौते किए फलस्वरूप गांधी -इरविन पैक्ट मार्च 1931 में हुआ इसके बाद गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त कर दिया। गांधी इरविन पैक्ट को दिल्ली समझौता भी कहते हैं। इसी बीच प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी १९३१ ) संपन्न हो गया। इस सम्मेलन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लेबर पार्टी के मैकडोनाल्ड थे। इस सम्मेलन के तुरंत बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और बुकटेश्वर दत्त को फांसी पर लटका दिया गया।
दूसरा गोलमेज सम्मेलन 01 सितम्बर 1931 से 11 दिसंबर 1931 तक चला। इसमें कांग्रेस की तरफ से गांधी जी ने भाग लिया परन्तु यह सम्मेलन असफल रहा। इसके बाद गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से शुरू कर दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन आधिकारिक तौर पर 07 अप्रैल 1934 को समाप्त कर दिया गया।
तृतीया गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1932 में हुआ।
कांग्रेस में कुछ अन्य घटनाएँ
भगत सिंह के फांसी और गोलमेज सम्मेलन असफलता के बाद कई नेता कांग्रेस और गांधीजी से बहुत ही नाराज थे। इसी के चलते 1934 ई. में कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। सुभाष चन्द्र बोस भी गांधीजी से बहुत नाराज थे और 1939 में सुभाष चन्द्र बोस ने गांधी जी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को हराकर कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। सुभाष चन्द्र बोस ने 01 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना किया। इसके एक साल बाद कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की। कांग्रेस के वर्धा अधिवेशन 1942 में अंग्रेज भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया। जिसके फलस्वरूप 09 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। इस आंदोलन का नारा था --- करो या मरो। करो या मरो का नारा ग़ांधी जी ने दिया था।
भारत छोड़ो आंदोलन (अगस्त क्रांति 1942 )
भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा 08 अगस्त 1942 को हुआ और 09 अगस्त 1942 से शुरू हो गया। यह आंदोलन इतना भयावह था की अंग्रेजों की हालत पतली हो गयी। उन्हें भारत खो देने का डर लग रहा था क्यूंकि
1939 ई. में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया था जिससे ब्रिटिश सरकार अपने विरोधियों से लड़ते हुए बिलकुल परेशान थी और उसे भारत से कोई समर्थन हासिल नही हो पा रहा था। इसी प्रयास में ब्रिटिश सरकार ने स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन (1942) को भारत भेजा जिससे की भारतीय राजनितिक दलों का समर्थन हासिल हो सके और ब्रिटेन पूरी मजबूती से द्वितीय विश्व युद्ध लड़ सके। क्रिप्स मिशन ने भारत और कांग्रेस के सामने यह प्रस्ताव रखा की द्वितीया विश्व युद्ध में अगर भारतीय लोग अंग्रेजों का साथ दे तो अंग्रेज भारत को आजाद कर देंगे लेकिन भारत सहमत नही हुआ और क्रिप्स मिशन असफल रहा।
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो गया लेकिन ब्रिटेन की हालत बहुत ही ख़राब हो गया था। उसे भारत जैसे उपनिवेश को बचा पाना मुस्किल लग रहा था और ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्र करने के इरादे से कैबिनेट मिशन को 1946 ई. में भारत भेजा। अंततः भारत 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान विभाजन के साथ आजाद हो गया।
भारीतय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नारा
1. जय हिन्द --------- सुभाष चन्द्र बोस
2. कर मत दो ---------- बल्लभ भाई पटेल
3. दिल्ली चलो ---------- सुभाष चन्द्र बोस
4 इंकलाब जिंदाबाद ---------- भगत सिंह
5 करो या मरो ------- महात्मा गांधी
6. पूर्ण स्वराज्य ----------- जवाहर लाल नेहरू
7 आराम हराम है ----------- जवाहर लाल नेहरू
8 साम्राज्य वाद का नाश हो ------------------- Bhagat singh
9 तुम मुझे खून दो मै तुझे आजादी दूंगा ----------- सुभाष चन्द्र बोस
10 स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है ----------बाल गंगाधर तिलक
११. साइमन कमीशन वापस जाओ ------------------- Lala lajpat rai
12. सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है -------राम प्रसाद बिस्मिल
13 हु लीव्स इफ इंडिया डाइज जवाहर लाल नेहरू
14 सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा --------------- Iqbal
प्रमुख किसान आंदोलन
खेड़ा आंदोलन (1918 ) -- गुजरात के खेड़ा जिले में किसानो द्वारा यह आंदोलन किया गया। सुखा पड़ जाने के कारण खेड़ा के किसान गांधीजी तथा बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में कर नही देने का अभियान चलाया।
बारदोली आंदोलन (1928 ) -- अंग्रेजों द्वारा 1927 में गुजरात के बारदोली में किसानो पर कर बढ़ा दिया गया। इसी के चलते बारदोली के किसान बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में आंदोलन चलाया। बारदोली के आंदोलन के बाद बल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि बारदोली के महिलाओं द्वारा दी गयी।
बंगाल का निल आंदोलन - यह आंदोलन बंगाल में किसानो के शोसन के विरोध में था। यह आंदोलन 1859 -60 में चला। मशहूर नाटककार दीनबंधु मित्र के नाटक "निल दर्पण " में इसे दिखाया गया है।
सारांश (Summary)
- 1857 के सिपाही विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई माना जाता है।
- मंगल पाण्डेय 24 मार्च 1857 को विद्रोह कर दिया था।
- बंगाल का निल आंदोलन 1859 -60 में हुआ था
- नाटक "निल दर्पण " दीनबंधु मित्र की प्रस्तुति है जो बंगाल के निल आंदोलन से सम्बंधित है
- बिहार का चंपारण सत्याग्रह 1917 में गांधीजी के नेतृत्व में हुआ
- गुजरात का खेड़ा आंदोलन 1918 में बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में हुआ
- केरल के मोपला विद्रोह 1921 में हुआ था
- गुजरात के वारदोली सत्याग्रह 1928 में सरदार पटेल के नेतृत्व में हुआ था
- ह्विटले आयोग की स्थापना 1929 में हुई थी
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई
- बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य की उपाधि दी गयी थी
- ब्रिटिश बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति का जनक मानते थे
- लाला लाजपत राय को पंजाब केसरी कहा जाता है
- बिपिन चन्द्र पाल ने 1901 में न्यू इंडिया का प्रकाशन शुरू किया
- वन्दे मातरम का प्रकाशन 1906 में अरविन्द घोष और बिपिन चन्द्र पाल के संपादन में हुआ था
- चर्चित लेख "न्यू लैम्प्स फॉर ओल्ड (1893 -94 ) का प्रकाशन अरविन्द घोष ने किया
- 1909 एक्ट को मार्ले मिंटो सुधार कहा जाता है
- मार्ले मिंटो सुधार फुट डालो और शासन करो की नीति पर आधारित था
- कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1916 ) में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता हुआ
- अप्रैल 1916 में बाल गंगाधर तिलक ने होम रूल की स्थापना की
- सितम्बर 1916 में एनी बेसेंट ने होम रूल की स्थापना की
- भारत में रोलेट एक्ट 19 मार्च 1919 को लागु किया गया
- 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियावाला बाग हत्याकांड हुआ था
- गांधीजी ने असहयोग आंदोलन 01 अगस्त 1920 को शुरू किया
- चौरी चौरा कांड 05 फ़रवरी 1922 को हुआ
- चौरी चौरा कांड के कारण गांधीजी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया
- महात्मा गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष सिर्फ एक बार चुने गए (बेलगाम अधिवेशन 1924 )
- काकोरी कांड 09 अगस्त 1925 को हुआ था
- साइमन कमीशन(वाइट मैन कमीशन ) 03 फ़रवरी 1928 को भारत आया
- लाला लाजपत राय की मृत्यु 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध करने के दौरान हुई
- 17 दिसंबर 1928 को सॉण्डर्स की हत्या भगत सिंह ने लाहौर में कर दिया
- भगत सिंह और बुकटेश्वर दत्त ने 08 अप्रैल 1929 को पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में लाहौर असेंबली में बम फेका
- गांधीजी का डांडी यात्रा 12 मार्च 1930 को शुरू हुआ
- 08 मार्च 1931 को गांधी -इरविन समझौता हुआ
- प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को शुरू हुआ
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 07 सितम्बर 1931 को शुरू हुआ। इसमें कांग्रेस की ओर से गांधी जी भाग लिए
- तृतीय गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 को शुरू हुआ
- 23 मार्च 1931 को सुखदेव , राजगुरु और भगत सिंह को फांसी दी गयी
- सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 में शुरू हुआ
- सुभाष चन्द्र बोस ने 01 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना किया
- कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1940 ) में पहली बार मुस्लिम लीग ने एक अलग देश पाकिस्तान की मांग रखी
- 09 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन की शुरुआत हुई
- कैबिनेट मिशन 1946 में भारत अाया
- 15 अगस्त 1947 को भारत स्वत्रंत हो गया
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर के लिए यहाँ क्लिक करें
Kaabil a tarif (k)
ReplyDeleteBetter
ReplyDeleteThanks for this very nice
ReplyDelete